अगर फेल हो जाएं तो क्या करें
एग्जाम शुरू होने से पहले और एग्जाम के दौरान छात्र / छात्राओं में फेल हो जाने का भय तब तक रहता है। जब तक रिजल्ट आ न जाए। ये एक प्रकार का बहुत बड़ा मानसिक दबाव होता है। कभी कभी कुछ छात्र अवसाद के मुहाने में भी खड़े हो जाते हैं।
फेल होने से पहले एग्जाम के दौरान ये आपके प्रदर्शन पर भी बुरा प्रभाव डालता है।
आत्मविश्वास
आत्मविश्वास सबसे बड़ी पूंजी है। प्रत्येक छात्र को आत्मविश्वास होना चाहिए कि वो सिर्फ और सिर्फ अच्छे नंबर से पास होगें। जिससे यकीनन आपका प्रदर्शन सुपर रहेगा। वर्तमान परिप्रेक्ष में फेल होने की संभावना कम हो गई है। फिर भी फेल हो जाने के बाद भी जीवन खत्म नही होता है। चिंता इसी बात की है कि कुछ युवा और युवतियां मात्र फेल हो जाने की वजह से मौत को गले लगा लेते हैं। जबकि विकल्प बहुत सारे हैं। आपकी जिंदगी में सफलता, असफलता की कहानी बनती रहती है।
असफलता की कहानी चुनौती होती है कि उसे सफलता की कहानी कैसे बनाएं ?
इसी संबंध में आपको आगे बता रहा हूं। सबसे बड़ी बात धैर्य की होती है।
धैर्य
विद्यार्थी वही है जिसके अंदर धैर्य धरोहर के रूप मे हो। उसका अपना नजरिया हो। धैर्य ही उसकी ताकत होती है। इसलिये फेल हो जाने पर धैर्य न खोकर साहस बनाए हुए आगे की सुधि लेना चाहिए। वैसे भी कहा गया है कि “बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले”।
विकल्प
फेल हो जाने के बाद बिना साल बर्बाद किए पास होने के तमाम विकल्प भी मौजूद हैं। राज्यवार, और बोर्ड के नियम के अनुसार अलग अलग राज्य में कम से कम 33%, 40%, 50% अंक तक भी फेल होना माना जाता है। जैसे इंजीनियरिंग में कुछ राज्य में 40% अंक तक को फेल माना जाता है। यूपी बोर्ड में कम से कम 33% अंक अर्जित करने वाले को पास माना जाता है। इससे कम मतलब फेल हो गए।
अब तो ऐसा भी है कि ग्रेडिंग प्रणाली से हाईस्कूल, इंटर तक बामुश्किल ही कोई फेल किया जाता है। कदाचित ऐसा हो जाता है तो दुबारा काॅपी चेक कराने का विकल्प है। किंतु इसमे समय की अधिक खपत होती है। कुज जगहो पर बैक पेपर की व्यवस्था है।
आप अगली क्लास/सेमेस्टर में एडमिशन लेकर बैक पेपर देकर उत्तीर्ण हो सकते हैं। इसलिये फेल होना अब परेशानी का सबब नही है बल्कि उचित मार्गदर्शन और मानसिक सहयोग की जरूरत होती है।
माता – पिता का कर्तव्य
आपका पुत्र/पुत्री अगर फेल हो जाते हैं तो उसे बिलकुल भी मानसिक प्रताड़ना न दें। विश्वास रखें जिस बच्चे को आपने जन्म दिया है। उसका मनोबल सदैव आप ही उच्च रखेगें। भारत के प्रधानमंत्री अटल जी ने कहा था कि “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”। इसलिये पैरेंट्स का कर्तव्य है कि आपका बेटा मन से कभी हार न सके।
अक्सर सुना गया है कि फेल होने के बाद युवा छात्र ने मौत को गले लगा लिया। यकीनन फिर पैरेंट्स पछताते हैं। उन्हे अपने बेटे की कमी महसूस होती है। किंतु समय पर ही अपने बच्चा को मानसिक मजबूती प्रदान करेगें तो विश्वास रखिये कि आपका बेटा जीवन के विजयपथ का “विजेता” रहेगा।
स्टूडेंट क्या करें
अगर आप फेल हो जाते हैं तो उस विषय की फिर से तैयारी करिए। उस विषय पर रूचि बढाइये। विषय पर रूचि न होना ही फेल होने का कारण होता है। आपके अंदर अपार क्षमता का भंडार है। एक कहावत बिलकुल सत्य है “रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान”। अर्थात आप लगातार परिश्रम करेगें तो कठिन से कठिन सवाल का जवाब मिल जायेगा। यही सफलता का सूत्र भी है।
एक विषय या एक से अधिक विषय पर फेल हो जाने के पश्चात बैक पेपर देकर भी पास कर सकते हैं या उत्तर पुस्तिका पुनः चेक कराने का निवेदन कर सकते हैं। आपके समक्ष विकल्प अनेक हैं। अस्तु घबराने की तनिक भी जरूरत नही है। इस दौरान अवसाद से बचने की भरपूर कोशिश करें। किसी भी प्रकार की चिंता न करें। असफलता और सफलता जीवन के दो अभिन्न पहलूं हैं। जिनसे कहीं न कहीं हर व्यक्ति गुजरा होता है। इसलिये आपको आत्मविश्वास बनाये रखना ही श्रेयष्कर साबित होगा।
क्रिटिसिज्म
असल मे हमारे देश में थ्योरिकल एग्जाम पर ज्यादा जोर दिया जाता है। जो एजुकेशन सिस्टम की बहुत बड़ी कमजोरी भी है। तमाम स्टूडेंट्स ऐसे भी होते हैं कि प्रैक्टिकली नाॅलेज अधिक होता है किंतु थ्योरी में फेल हो जाते हैं। ज्यादा लिख पाने में असमर्थ होते हैं किंतु विषय से उनका जुड़ाव होता है। इसलिये भी कतई न सोचें कि आप किसी से कमजोर हैं बल्कि आपको थोड़े से मार्गदर्शन और सहायता की जरूरत है। मंजिल नजर आ जायेगी।
हम आपकी मदद कर सकते हैं
एजूकेशन की फील्ड में स्टूडेंट्स की मानसिक मदद करने के लिए मैं और हमारी टीम सदैव तैयार रहती है। एक स्टूडेंट को अपना लक्ष्य तय करना ही सबसे बड़ी चुनौती होती है। अक्सर देखा गया है कि स्टूडेंट किसी से इन्फ्लूएंश होकर निर्णय ले लेते हैं। यही उनकी असफलता का सबसे बड़ा कारण होता है।
कोई स्टूडेंट गणित में अधिक योग्य हो सकता है तो आवश्यक नहीं कि आपको भी गणित में उतनी ही योग्यता रखने की आवश्यकता है। स्वयं की पहचान और रूचि को जानने की जरूरत होती है। अमूमन प्रत्येक स्टूडेंट किसी एक विषय और क्षेत्र में अधिक योग्य हो सकता है।
या जानने योग्य है कि डाक्टरेट की उपाधि किसी एक विषय पर ही मिलती है। एक विषय के विशेषज्ञ हो सकते हैं। इसलिये किसी एक विषय में कमजोर होना पर थोड़ी रूचि बढाने की आवश्यकता होती है। जिससे उसे अच्छे नंबर से पास कर सकें। शेष काम अपनी रूचि पर छोड़ दें। आवश्यक नही कि पड़ोसी का बेटा इंजीनियर बन गया तो आप भी इंजीनियर ही बनें। आप प्रतिभानुसार डाक्टर, आईएएस या फिर समाजसेवा के क्षेत्र में भी अच्छा काम कर सकते हैं।
इसलिये हम सदैव आपकी मानसिक चिकित्सा के लिए तैयार हैं। असफलता से निराश न होकर आशा भरी नजरों से हमारी तरफ निहार सकते हैं। हर मुश्किल से सरलता से मंजिल की ओर साथ साथ कदम बढायेगें।
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