यह बड़ा प्रश्न है. जिंदगी में हर किसी के साथ ऐसा प्रश्न आता है. शिक्षा में अक्सर ऐसा प्रश्न अपनी पढाई पूरी करने के बाद आता है. शिक्षा के अलावां भी जिंदगी में कई बार ऐसे प्रश्न आते हैं. समाधान के लिए कई विकल्प होते हैं. कई रास्ते होते हैं. पर सब रास्तों में धुंध छाया होता है. साफ़ साफ़ कुछ दिखता नहीं. दूर तक नहीं दिखता. मंजिल नहीं दिखती. बड़ा कंफ्यूजन होता है. बार बार यही प्रश्न आता है कि ‘अब मैं क्या करूँ‘.
ऐसी अवस्था में ये करिए.
- मन को शांत करिए. कोई जल्दीबाजी नहीं है. समय कहीं भाग कर नहीं जाएगा. चुपचाप बैठ जाइए और मन को शांत करिए.
- शांत मन से अपनी बात अपने से बड़ों को या परिवार को या शुभचिंतक मित्रों को बताइए. उनसे विचार विमर्श कीजिए. सलाह लीजिए.
- सभी की बातें आपको अच्छी नहीं लगेंगी. फिर भी सभी की सुनिए. जो यह कहे कि उधर मत जाओ, उधर आग लगी है, जल जाओगे, उसकी भी सुनिए. वो आपका शुभचिंतक है.
- याद रखिए. कोई जल्दी नहीं है. जिंदगी में बहुत समय है. किसी भी सलाह पर तत्काल फैसला मत लीजिए. सब की सुनिए और कुछ दिनों के लिए भूल जाइए. कुछ दिनों बाद फिर से उन सलाहों पर विचार कीजिए. समय का अंतराल मनः अवस्था को बदल देता है. जो सलाह तब खराब लग रही थी, हो सकता है कि आज वो अच्छी लगे. जो सलाहें अच्छी लगीं हों उन्हें मन में रख लीजिए और बाकी को मन से निकाल दीजिए.
- अच्छी सलाहों पर जरुरत के मुताबिक फिर से चर्चा कर सकते हैं, सोच विचार कर सकते हैं.
- अब जो सलाह आप के दिल को सबसे अच्छी लगे उसे चुनिए और उस पर जी जान से जुट जाइए.
आप सफल होंगे.